गन्ने के खेत में सील तुड़वाई
मेरा नाम लीना है| मैं आज आपको एक बहुत ही उत्तेजिक desi kahani ; Khet Me Chudai सुनाने जा रही हूँ| रोहिणी है मैं आपका खड़ा करने में सफल रहूँ.. हमारे गाँव में बहुत से कच्चे मकानों के बीच हमारा मकान पक्का है जिसमें मेरा, मेरे भाई का, माँ पापा का सबका अलग अलग कमरा है.
एक रात की बात है, मैं लगभग ११ बजे बाथरूम जाने के लिए उठी. बाथरूम माँ के कमरे को पार करने के बाद पड़ता है. जब मैं उस कमरे के सामने से गुज़री तो मुझे माँ के कराहने और ज़ोर ज़ोर से सांसें लेने जैसी आवाज़ें सुनाई पड़ी. मैं एक बार को तो डर गई, पर मैंने हिम्मत रखते हुए चाबी के छेद से झांका तो मैं दंग रह गई. कमरे में पापा माँ बिल्कुल नंगे खड़े थे. पापा माँ की स्तन दबा रहे थे और बार बार उनके चूतड़ों पर जोर से चपत सी मारते जा रहे थे.
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पहले तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया पर फ़िर मैंने ध्यान से देखा कि पापा माँ से चिपटे हुए हिल भी रहे थे. तभी वे थोड़ा सा घूमे तो मेरी खोपड़ी घूम गई. पापा ने अपना लण्ड शायद माँ की चूत में डाल रखा था और वहीं धक्के मार रहे थे. मेरी समझ में कुछ कुछ आने लगा था. मेरी कॉलेज की सहेली ने एक बार मुझे अपनी चुदाई की कहानी सुनाई थी. आज़ अचानक वही चुदाई मुझे अपने घर में होती दिखाई दी.
पता नहीं क्यों, पर वो नज़ारा देख कर मेरी चूत में खुज़ली सी होने लगी और मुझे अपनी सांसें कुछ भारी सी लगने लगी. मैं वहाँ पर पूरा कार्यक्रम देखकर बाथरूम जाकर अपने कमरे में तो आ गई पर मुझे फ़िर नींद नहीं आई.
वो सीन मेरी आंखों के सामने नाचने लगा. मैंने अपनी सलवार और चड्डी उतार दी और एक हाथ से अपनी स्तन दबाते हुए अपने पैन को चूत में डाल कर चलाया. फ़िर पैन के बज़ाए दूसरे हाथ की उँगली डाली. थोड़ी देर बाद मेरी चूत में से कुछ सफ़ेद सा निकला और मुझे पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गई.
सुबह माँ की आवाज़ ‘ कॉलेज नहीं जाना है क्या ! जल्दी उठ !’ से मेरी आँख खुली, तो जल्दी से कपड़े पहन कर बाहर आई.
मुझे रात की बात अभी भी याद आ रही थी, पर मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगी. मैं चड्डी और ब्रा पहन कर ही नहाती हूँ पर उस समय मेरी उत्तेज़ना बढ़ गई और मैं पूरी नंगी होकर नहाई और उँगली, साबुन की सहायता से अपनी चूत का पानी निकाला.
तरोताज़ा होकर, नाश्ता कर मैं कॉलेज के लिए घर से निकल गई. थोड़ी सी दूर सड़क से बस मिल जाती है, वहीं से मैंने बस पकड़ी जो रोज़ की तरह ठसाठस भरी थी. जैसे-तैसे गेट से ऊपर चढ़ कर थोड़ा बीच में आ गई. तो वो रोज़ की कहानी चालू. आप तो जानते ही होंगे, जवान लड़की अगर भीड़ में हो तो लोग कैसे फ़ायदा उठाते हैं, और आप उन्हें कुछ कह भी नहीं सकते.
वही मेरे साथ होता है. मेरे पीछे से कोई मेरे चूतड़ दबाने सा लगा, तो एक अन्कल मेरे कन्धे पर बार बार हाथ रख कर खुश होने लगे. एक महाशय सीट पर बैठे थे, भीड़ की वज़ह से मेरी साईड उनके सिर से दबी थी, जो उन्हें भी मज़ा दे रही होगी.
इतने में मेरी ही क्लास का एक लड़का जो बहुत दिन से मेरे पीछे पड़ा था और केवल मेरे लिए ही इस बस से आता-जाता था, अपने गाँव से बस में चढ़ा. लम्बा-चौड़ा तो खैर वो है ही, हैण्डसम भी है. पर मैं उसे ज्यादा भाव नहीं देती थी. आज़ तो वो सबको हटाता हुआ ठीक मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया. मैंने उसे देखा पर मैं कोई आपत्ति करने की स्थिति में नहीं थी. कुछ कहा तो बोला- बस में भीड़ ही इतनी है.
मुझे चुप हो जाना पड़ा. मुश्किल से पाँच मिनट बीते होंगे कि अचानक ड्राईवर ने बड़े जोर से ब्रेक लगाए और पता नहीं क्यों ड्राईवर मादरचोद, बहनचोद जैसी माँ बहन की गालियाँ किसी को बकने लगा. शायद कोई बस के आगे आ गया होगा.
लेकिन उसके अचानक ब्रेक मारने से थोड़ सा बैलैंस तो सबका बिगड़ ही गया था. शौरभ, मेरा क्लासमेट गिरते गिरते बचा. उसके हाथ में मेरी दाईं चूची आ गई थी, या वो जानबूझ कर उसे पकड़ कर लटका. पर इतना जरूर हुआ कि उसने उसे कायदे से दबा मसल जरूर दिया. मुझे गुस्सा आया, पर मैं कुछ कहती, उससे पहले ही वो वैरी सोरी कहने लगा. तो मुझे भी लगा कि शायद
वो फ़िर मेरे से सट कर खड़ा हो गया. बस चलने लगी. इतने में मैंने अपने चूतड़ों के बीच अपनी गाण्ड में कुछ चुभता सा दबाव महसूस किया. पहले तो मैंने इस पर खास ध्यान नहीं दिया अप्र मैं समझ गई कि शौरभ का लण्ड मेरे चूतड़ों की गरमी खा कर खड़ा हो गया है और वो ही मुझे चुभ रहा है. यह सोच कर मुझे रात वाला नज़ारा फ़िर याद आ गया और मेरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई. अब मैं बिल्कुल बिना हिले कपड़ों के ऊपर से ही अपनी गाण्ड का तिया-पाँचा कराने लगी.अनायास ही यह हो गया होगा.
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कुछ देर बाद ही कॉलेज जाने वली सड़क पर बस रुकी और कॉलेज जाने वाले सभी लोग उतरने लगे. मैं और शौरभ साथ साथ ही उतरे. उतरने के बाद भी आज़ तो वो मेरे साथ ही चलने लगा. कुछ मिनटों बाद मैंने उससे मुस्कुरा कर कह ही दिया कि आप जो बस में कर रहे थे, वो अच्छी बात नहीं है. इस पर वो नाटक करते हुए बोला कि मैंने तो कुछ नहीं किया और कहते कहते ही मेरे चूतड़ों को भी दबाने लगा. मुझे भी अच्छा सा लगा पर मैंने उससे कुछ नहीं कहा.
अचानक ही हम कॉलेज जाने वाले मोड़ से कॉलेज की बजाए जंगल वाली सड़क पर मुड़ गए. शुरू में तो मुझे मज़े मज़े में पता ही नहीं चला पर थोड़ी देर बाद मैंने उससे कहा तो बोला- कॉलेज में तो रोज़ ही जाते हैं, चलो आज एक नया नज़ारा दिखाता हूँ.
उसकी बात का मतलब समझते हुए भी मैं उसके साथ चलने लगी, सच में तो मुझे रात से लग रहा था कि कोई मेरी चूत को चोद डाले, जैसे पापा माँ को चोद कर मज़ा दे रहे थे.
एक जगह बिल्कुल सुनसान थी. दूर दूर तक कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था. तभी हमें गन्ने के खेत के बीच में कुछ खाली हिस्सा नज़र आया. वो मुझे वहीं ले गया और मुझसे लिपट कर जगह जगह मुझे चूमने चाटने लगा. इससे मेरी उत्तेज़ना और बढ़ गई. इसके बाद जब उसने मेरी चूचियों को दबाना-मसलना शुरू किया तो मुझे जैसे ज़न्नत दिखाई देने लगी. वो एक हाथ से मेरी चूचियां और दूसरे हाथ से मेरे चूतड़ों को बारी बारी दबा रहा था.
अचानक उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए. मैं मना करने की स्थिति में नहीं थी, सो मैंने हाथ ऊपर कर दिए ताकि वो मेरा कुर्ता आराम से उतार सके. उसने मेरी सलवार का नाड़ा भी खींच दिया. सलवार बिना लगाम के घोड़े की तरह झट से नीचे गिर गई. अब मैं उसके सामने केवल ब्रा और पैन्टी में रह गई थी.
मुझे शर्म तो आ रही थी लेकिन उत्तेज़ना शर्म पर हावी हो गई थी. सो मैं चुपचाप तमाशा देखती रही. उसने पहले तो मेरे सीने को फ़िर नाभि को ऐसे चूसना शुरू कर दिया मानो कुछ मीठा उस पर गिरा हो और वो उसे चाट कर साफ़ कर रहा हो. मैं बुरी तरह उत्तेज़ित हो रही थी कि उसने मेरी चड्डी के ऊपर से एक उँगली मेरी चूत में घुसेड़नी शुरू कर दी. मुझे दर्द का भी अहसास हुआ पर मैं उसे मना ना कर सकी. पता नहीं मुझे क्या हो गया था लेकिन मैं बेशर्म हो कर अपनी स्तन अपने आप दबाने लगी थी.
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उसने धीरे धीरे मेरी पैन्टी और ब्रा को भी मेरे शरीर से अलग कर दिया और मुझे मादरजात नंगी कर दिया. मैं तड़प रही थी और उसे मज़ा आ रहा था.
वो अभी तक पूरे कपड़ो में खड़ा था. मुझे गुस्सा आया और मैंने उसे गाली दे देकर कहना शुरू कर दिया कि अपने कपड़े भी तो उतार. वो झटके से मुझसे अलग हुआ और बिजली की रफ्तार से उसने अपने कपड़े उतार दिये. चड्डी उतारते के साथ मेरी हालत खराब हो गयी. उसका लण्ड मेरे पापा के लण्ड से कम से कम दुगुना लग रहा था. उसकी लम्बाई कम से कम ८ इंच और गोलाई कम से कम ३ इंच से तो किसी भी तरह कम नहीं थी.
उसने अपना हथियार मेरे हाथ में देकर मुझसे सहलाने को कहा. मैं उसे हाथ में लेकर आगे पीछे करने लगी तो उससे डर कुछ कम लगने लगा. फिर उसने मुझे नीचे बैठाया और अपना लण्ड मेरे मुँह में देने लगा. मुझे बहुत घिन्न आ रही थी कि इसी से ये मूतता होगा और अपना पेशाब मुझे पिलाने की तैयारी में है और सच में उसने मेरे मुँह में डालते डालते पेशाब की तेज धार मेरे मुँह और सारे चेहरे पर डाल दी और हंसने लगा.