दादाजी ने पोती की सील तोड़ी
बात तब की है जब
मेरे दादाजी की उम्र करीब ५० की थी, उनका ब्याह दादीजी से बहुत कम उम्र में हो गया था. दादीजी
खुद 48 की. मेरे पिता
३३ के थे और मेरी माताजी का तो बस बत्तीसवां लगा था. मेरी उम्र का मुझे याद नहीं,
आप खुद अंदाजा लगा लो. वो
मेरा पहला अनुभव था.
बैठक में बस मैं
दादाजी और दादीजी थे. दादीजी घर का काम करने में व्यस्त थीं. दादाजी और मैं टी.वी.
देख रहे थे. दादाजी ने थोड़ी पी रखी थी. उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और बगल में
बिठा लिया.
मैं टी.वी. देखने
में मशगूल थी और दादाजी का हाथ कब मेरी स्किर्ट के नीचे मेरी चड्डी तक गया पता
नहीं चला. दादाजी ने चड्डी सरका कर धीरे धीरे मेरी बुर पर ऊँगली रगड़ने लगे. मैं
गरम होने लगी थी. दादी का कहीं पता नहीं था.
मैंने दादाजी की तरफ देखा, दादाजी ने झट से मेरे लबों पर एक किस जड़ दिया. मैं भी उनका साथ देने लगी. दादाजी ने अपने जीभ से मेरी जीभ चाटने लगे. हलके हलके मेरे होंठों को चबाने लगे.
दोस्त की बहन को झाड़ियों में जबरदस्ती चोदाएक हाथ से
उन्होंने अपने पैंट की जिप खोली, और मेरे हाथों को
अपने चड्डी पर रख कर सहलाने का इशारा किया. उनका हथियार तो करीब ६-६.५” इंच लम्बा होगा. मैं उनके
लंड को सहलाने लगी.
उनका दूसरा हाथ
मेरी पीठ पर सरक रहा था. उनका हाथ सरकते सरकते मेरी गर्दन तक पहुंचा और फिर
उन्होंने मेरा सर अपनी लंड की तरफ झुकाया, जो अब तक तन कर लोहे की तरह मजबूत और खड़ा हो चुका था. एक
झटके से उन्होंने मेरे मुंह में अपना लिंग दे दिया. उनका लिंग मेरे अंदाज़ से कहीं
बड़ा था. ७.५” इंच के लंड को
मैं कंवारी कहाँ ले पाती. लेकिन उस झटके से उनका लिंग सीधे मेरे कंठ तक आ पहुंचा.
दादाजी मेरा मुंह आगे पीछे कर के मुख मैथुन का मजा ले रहे थे. दोनों हाथों से मेरे
सर को आगे पीछे कर के करीब ३-४ मिनट तक मजा लिया. इसके बाद उन्होंने मुझे आजाद किया.
मैं खड़ी हुई की एक चपत मेरे गांड पर पड़ी. मैं तिरछी क्या हुई, एक झटके में मेरी पैंटी
खींच दी. फिर मुझे पैंटी के बंधन से आजाद कर के मुझे अपनी गोद में बैठने का इशारा
किया. मुझे टांगे फैला कर अपने लंड पर बैठा लिया. उनका लंड सीधे मेरी बुर को चीरता
हुआ, अन्दर चला गया.
मैं चिल्लाने वाली थी लेकिन उन्होंने एक हाथ से मेरा मुंह बंद कर रखा था. फिर मेरी
कमर को उठा उठा कर मुझे चोदना शुरू कर दिया. थोडा दर्द हो रहा था, लेकिन फिर मजा आने लगा.
दादाजी ने भी मेरी चूचियां जो अभी बस थोड़ी ही बड़ी थी, उसे दबाने लगे, थोड़ी देर में जो मसलने लगे, उस आनंद की क्या बात करून,
मैं बस चरम पर पहुँचने
वाली थी, मैं आंखे बंद कर
के झड़ने वाली ही थी की, दरवाजे की खटपट
से मैं और दादाजी दोनों रुक गए. दादीजी मुख्य द्वार बंद कर के इस तरफ आ रही थी. अब
तो मेरी हालत ख़राब हो गयी. इस अवस्था में पकडे जाने का कभी सोचा नहीं था. जब
चुदाई शुरू की थी, तब तो सोचा भी
नहीं था. लेकिन जो हुआ वो कभी सोचा नहीं था.
“आओ जानेमन,
तुम भी अपने पोती के साथ
शामिल हो जाओ.”
“बड़े कमीने निकले
तुम तो. शर्म हया को क्या हो गया? कभी सोचा भी की
घर की इज्जत का क्या होगा?”
“इतना गुस्सा
क्यों हो रही हो? अपनी पोती ही तो
है. थोड़ी सी चुदाई कर ली तो क्या हो गया?”
“इतना करने की
जल्दी मची थी तो कमसे कम दरवाजा तो लगा लेते.”
यह सुनते ही मैं खुश हो गयी. दादीजी की रजामंदी थी ही. दादीजी ने कहा, “तुम्हे कुछ ख्याल नहीं की बच्चों को सेक्स ज्ञान कैसे देते हैं? मैं सिखाती हूँ.”
धोखा देने वाली नौकरानी की कहानीदादीजी मुझे
दादाजी की गोद से उतरा. फिर मेरे सारे कपडे उतर दिए. मैंने पैंटी तो वैसे ही उतार
दी थी, ब्रा नहीं उतार
थी. उधर दादाजी दादी के कपडे उतार रहे थे. उतारते उतारते वो दादीजी को यहाँ वहां
चूम रहे थे. दादीजी मेरे चूचियां हलके-हलके मसलनी शुरू की. मुझे पलंग पर लिटा कर
एक हाथ से एक चूची मसली और दूसरी चूची चूसनी शुरू कर दी. दुसरे हाथ की दो उँगलियों
से मेरे चूत को चोदना शुरू कर दिया. तब तक दादाजी भी नंगे हो कर दादीजी चूत चाटने
लगे थे.
फिर दादीजी ने
मुझे उनके साथ वैसे ही करने के लिए कहा. अब मैं उनका स्तनपान कर रही थी, और दादीजी दादाजी के लंड
का स्वाद ले रही थी. थोड़ी देर के बाद, दादीजी कुतिया स्थिति में आ गयी. मुझे सामने बिठा कर मेरे
बुर को चूसने लगी, और दादाजी ने
उनके पीछे से अपना वार चालू किया. करीब १५ मिनट तक चोदने के बाद दादाजी ने कहा,”
जानेमन अब मैं झड़ने वाला
हूँ, तैयार?” इस पर दादीजी अपनी चूत से
लंड निकलवा दिया और कहा, “आज तो इसकी बारी
है, हर बार तो मैं
चुदती हूँ ही, इस लड़की को भी
इसके यौवन का एहसास दिला दो.”
मैं ख़ुशी ख़ुशी,
अपने बुर में दादाजी का
लंड लेने को तैयार थी, मैं और दादाजी एक
ही साथ झड गए. दादाजी का पूरा पानी मेरे बुर में ही बह गया. मेरे बुर से खून और
वीर्य दोनों बहने लगे. उसे दादीजी चाट चाट कर साफ़ करने लगी, मैं उनकी बुर चाटने लगी,
तब उनकी बुर ने भी पानी
छोड़ दिया जो मेरे मुंह में आ गया. उनका पानी बड़ा ही नमकीन था. उनके बलरहित चूत
की क्या बात थी. सब तृप्त हो गए थे.
बाद में दादाजी
ने मुझे पैंटी पहनने से मन कर दिया. इस तरह वो जब चाहे मुझे चोद सकते थे.
इस कामक्रीड़ा के
बाद मुझे लगा की अब मम्मी-पापा आयेंगे तो उन्हें क्या लगेगा? मैंने सोचा की उन्हें
बताया ही न जाये.
रात में खाने के
टेबल, पर दादाजी
अत्यधिक प्रसन्न नज़र आ रहे थे. मैं उनकी बाजु वाली कुर्सी पर थी. उनका हाथ अब भी
मेरे पैंटी रहित चूत पर फिर रहा था.
“क्या बात है
बाबूजी, कोई सोने की
चिड़िया हाथ लग गयी क्या? बहुत खुश हो आज?”
अरे बात ही कुछ
ऐसी थी. तुम्हे आने वाले कुछ दिन में पता चल जायेगा.
उस बात को करीब एक महीने हो गए थे. रोज की तरह दोपहर में मैं दादाजी और दादीजी रंग-रेलियाँ मन रहे थे. किस्मत की बात थी की उस दिन मम्मी-पापा दोनों वापस आ गए. दरवाजे का ताला खोल कर वो सीधे ही उस कमरे में आ गए जहाँ मेरी चुदाई चल रही थी.
भिखारी ने मौका देख गांड मारी“आओ बहु, आज तुम भी अपने बेटी के
साथ चुदाई मना लो.”
“क्या बाबूजी,
कम से कम इस नाजुक कली को
तो छोड़ दिया होता.”
“अरे अब ये नाजुक
कली तो फूल बन चुकी है, चाहो तो तुम भी
इसका मुआयना कर सकती हो.”
दादीजी ने कहा,”हाँ बहु, ये तो कब की फूल बन चुकी
है, यही है तुम्हारे
बाबूजी की सोने की चिड़िया.”
इस बात चीत के
दौरान ही मेरे पापा नंगे हो चुके थे. उनका निशाना तो दादीजी का बुर था. दादाजी ने
मुझे अपने से अलग कर के मेरी माँ का वस्त्र हरण किया. उधर पापा अपनी माँ पर अपना
जौहर दिखा रहे थे, और मैं अपनी माँ
का चूत चाट रही थी. तब दादाजी ने माँ की चूत मारी, फिर उसकी गांड भी मारी, माँ ने मेरी ऊँगली कर के मेरा पानी निकाल दिया.
तब से हम घर के
लोगो में कोई पर्दा नहीं है. जो जब जी चाहे चुदाई मचा सकता है. माँ मेरे गर्भ ठहर
जाने के डर से मुझे रोज गोलियां खिलाती है. उनका आईडिया था की मैं कंडोम उसे करू,
पर मन नहीं माना. इसीलिए
बस गोलियों से काम चलाती हूँ. मेरी दिली इच्छा है की मैं अपने बाप या दादा के
बच्चे की माँ बनू. अभी कुछ दिनों में मेरी शादी होने वाली है, मैं अपने होने वाले को भी
उसके बाप दादाओं से चुदवाऊन्गी.