ससुर जी का जवान लंड बहू की कुंवारी चूत में

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सविता की शादी को दो साल हो चुके थे. बचपन से ही सविता बहुत खूबसूरत थी. १६ साल की उम्र में ही जिस्म खिलने लग गया था. सोलहवां साल लगते लगते तो सविता की जवानी पूरी तरह नीखर आई थी. ऐसा लगता ही नहीं था की अभी १०थ् क्लास में पर्ती है. स्कूल की स्किर्ट में उसकी भरी भरी जांघें लड़कों पे कहर ढाने लागी थी. स्कूल के लड़के skirt के नीचे सी झाँक कर सविता की पैंटी की एक झलक पाने के लीये पागल रहते थे. कभी कभार जब बास्केटबाल खेलते हुए या कभी हवा के झोंके सी सविता की स्किर्ट उठ जाती तो किस्मत वालों को उसकी पैंटी के दर्शन हो जाते. लड़के तो लड़के, School के Teacher भी सविता की जवानी के असर से नहीं बचे थे. सविता के भारी नितम्ब, पतली कमर और उभरती चूचियां देखके उनके सीने पे चहुरियन चल जाती. सविता को भी अपनी जवानी पे नाज़ था. वो भी लोगों का दिल जलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी.

जीजाजी का गधे जैसा लंड लिया

उनीस साल की होते ही सविता की शादी हो गई. सविता ने शादी तक अपने कुंवारे बदन को संभाल के रखा था. उसने सोच रखा था की उसका कुंवारा बदन ही उसके पति के लीये सुहाग रात को एक उन्मोल तोह्फहोगा. सुहाग रात को पति का मोटा लम्बा लंड देख कर सविता के होश उर गए थे. उस मोटे लंड ने सविता की कुंवारी चूत लहू लुहान कर दी थी. शादी के बाद कुछ din तो सविता का पति उसे रोज़ चार पाँच बार चोद्ता था. सविता भी एक लम्बा मोटा लौडा पा कर बहुत खुश थी. लेकीन धीरे धीरे चुदाई कम होने लगी और शादी के एक्साल बाद तो ये नौबत आ गई थी की महीने में मुश्किल से एक दो बार ही सविता की चुदाई होती. हालांकी सविता ने सुहाग रात को अपने पति को अपनी कुंवारी चूत का तोहफा दीया था, लेकीन वो बचपन से ही बहुत कामुक लड़की थी. बस कीसी तरह अपनी वासना को कंट्रोल करके, अपने School और कॉलेज के लड़कों और टीचर्स से शादी तक अपनी चूत को बचा के रखने में सफल हो गई थी. महीने में एक दो बार की चुदाई से सविता की वासना की प्यास कैसे बुझती ? उसे तो एक दिन में कम से कम तीन चार बार चुदाई की ज़रूरत थी.

आखिकार जब सविता का पति जब तीन महीने के लीये टुर पे गया तो सविता के देवर ने उसके अकेलेपन का फायदा उठा कर उसकी वासना को तृप्त किया. अब तो सविता का देवर रामू सविता को रोज़ चोद कर उसकी प्यास बुझाता था. एक दिन गाँव से टेलीग्राम आया की सास की तबियत कुछ ख़राब हो गई है. सविता के ससुर एक बड़े ज़मींदार थे. गाँव में उनकी काफ़ी खेती थी. सविता का पति राजेश काम के कारण नहीं जा सकता था और देवर रामू का कॉलेज था. सविता को ही गाँव जाना पड़ा. वैसे भी वहां सविता की ही ज़रूरत थी, जो सास और सुर दोनों का ख्याल कर सके और सास की जगह घर को संभाल सके. सविता शादी के फौरन बाद अपने ससुराल गई थी. सास सौर की खूब सेवा करके सविता ने उन्हें खुश कर दीया था.

सविता की खूबसूरती और भोलेपन से दोनों ही बहुत प्राभवित थे. सविता की सास माया देवी तो उसकी प्रशंसा करते नहीं थकती थी. दोनों इतनी सुंदर, सुशील और मेहनती बहू से बहुत खुश थे. बात बात पे शर्मा जाने की अदा पे तो ससुर रामलाल फीदा थे. उन्होंने ख़ास कर सविता को कम से कम दो महीने के लीये भेजने को कहा था. दो महीने सुन कर सविता का कलेजा धक् रह गया था. दो महीने बिना चुदाई के रहना बहुत मुश्किल था. यहाँ तो पति की कमी उसका देवर रामू पूरी कर देता था. गाँव में दो महीने तक क्या होगा, ये सोच सोच कर सविता परेशान थी लेकीन कोई चारा भी तो नहीं था. जाना तो था ही. राजेश ने सविता को कानपूर में ट्रेन में बैठा दीया. अगले दिन सबह ट्रेन गोपालपुर गाँव पहुँच गई जो की सविता की सौराल थी.

सविता ने चूरिदार पहन रखा था. कुरता सविता के घुटनों से करीब आठ इंच ऊपर था और कुरते के दोनों साइड का कटाव कमर तक था. चूरिदार सविता के नितम्ब तक तैघ्त था. चलते वक्त जब कुरते का पल्ला आगे पीछे होता या हवा के झोंके से उठ जाता तो तिघ्त चूरिदार में कसी सविता की टांगें, मदहोश कर देने वाली मांसल जांघें और विशाल नितम्ब बहुत ही Sexy लगते. ट्रेन में सब मर्दों की नज़रें सविता की टांगों पर लगी हुई थी. स्टेशन पर सविता को लेने सास और ससुर दोनों आए हुए थे. सविता अपने ससुर से परदा कत्र्ती थी इसलिए उसने चुन्नी का घूँघट अपने सिर पे ले लिया. अभी तक जो चुन्नी सविता की छातीयों के उभार को छुपा रही थी, अब उसके घूँघट का काम करने लगी. सविता की बड़ी बड़ी छातियन स्टेशन पे सबका ध्यान खींच रही थी.

सविता ने झुक के सास के पाँव छूए. जैसे ही सविता पों छूने के लीये झुकी रामलाल को उसकी चूरिदार में कसी मांसल जांघें और नितम्ब नज़र आने लगे. रामलाल का दिल एक बार तो धड़क उठा. शादी के बाद से बहू किखूब्सूरती को चार चाँद लग गए थे. बदन भर गया था और्जवानी पूरी तरह नीखर आई थी. रामलाल को साफ दीख रहा था की बहू का तिघत चूरिदार और कुरता बरी मुश्किल से उसकी जवानी को समेटे हुए थे. सास से आशिर्वाद लेने के बाद सविता ने सुर्जी के भी पैर छूए. रामलाल ने बहू को प्यार से गले लगा लीया. बहू के जवान बदन का स्पर्श पाते ही रामलाल कांप गया.

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सविता की सास माया देवी बहू के आने से बहुत खुश थी. स्टेशन के बाहर नीकल कर उन्होंने तांगा कीया. पहले माया देवी टाँगे पे चढी. उसके बाद रामलाल ने बहू को चढ़ने दीया. रामलाल को मालूम था की जब बहू टाँगे पे चढ़ने के लीये टांग ऊपर करेगी तो उसे कुरते के कटाव में से बहू की पूरी टांग और नितम्ब भी देखने को मिल जाएंगे. वाही हुआ. जैसे ही सविता ने टाँगे पे बैठने के लीये टांग ऊपर की राम्म्लाल को चूरिदार में कसी बहू की Sexy टांगों और भारी चूतडों की झलक मिल गई. यहाँ तक की रमलाल को चूरिदार के सफ़ेद महीन कपरे में से बहू की कच्छी (पैंटी) की भी झलक मिल गई. बहू ने गुलाबी रंग की कच्छी पहन रखी थी. अब तो रामलाल का लंड भी हरकत करने लगा. उसने बरी मुश्किल से अपने को संभाला. रामलाल को अपनी बहू के बरे में ऐसा सोचते हुए अपने ऊपर शरम आ रही थी. वो सोच रहा था की मैं कैसा इंसान हूँ जो अपनी ही बहू को ऐसी नज़रों से देख रहा हूँ. बहू तो बेटी के समान होती है. लेकीन क्या करता ? था तो मरद ही. घर पहुँच कर सास ससुर ने बहू की खूब खातिरदारी की.

गाँव में आ कर अब सविता को १५ दिन हो चुके थे. सास की तबियत ख़राब होने के कारण सविता ने सारा घरका काम संभाल लीया था. उसने सास ससुर की खूब सेवा करके उन्हें खुश कर दीया था. गाँव में औरतें लहंगा चोली पहनती थी, इसलिए सविता ने भी कभी कभी लहंगा चोली पहनना शुरू कर दीया. लहंगे चोली ने तो सविता की जवानी पे चार चाँद लगा दिए. गोरी पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी नितम्ब ने तो रामलाल का जीना हराम कर रखा था.

सविता का ससुर रामलाल एक लम्बा तगर आदमी था. अब उसकी उम्र करीब ५५ साल हो चली थी. जवानी में उसे पहलवानी का शौक था. आज भी उसका जिस्म बिल्कुल गाथा हुआ था. रोज़ लंगोट बाँध के कसरत करता था और पूरे बदन की मालिश करवाता था. सबसे बरी चीज़ जिस पर उसे बहुत नाज़ था, वो थी उसके मुस्क्लेस और उसका ११ इंच लम्बा फौलादी लंड. लेकीन रामलाल की बदकिस्मती ये थी की उसकी पत्नी माया देवी उसकी वासना की भूख कभी शांत नहीं कर सकी. माया देवी धार्मिक स्वभाव की थी. उसे सेक्स का कोई शौक नहीं था.

रामलाल के मोटे लंबे लौदे से डरती भी थी क्योंकि हेर बार चुदाई में बहुत दर्द होता था. वो मजाक में रामलाल को गधा कहती थी. पत्नी की बेरुखी के कारण रामलाल को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लीये दूसरी औरतों का सहारा लेना पड़ा. राम लाल के खेतों में कई औरतें काम करती थी. In मजदूर औरतों में से सुंदर और जवान औरतों को पैसे का लालच दे कर अपने खेत के पम्प हौस में चोद्ता था. जिन औरतों को रामलाल ने एक बार चोद दीया वो तो मानो उसकी गुलाम बुन जाती थी. आख़िर ऐसा लम्बा मोटा लंड बहुत किस्मत वाली औरतों को ही नसीब होता है. तीन चार औरतें तो पहली चुदाई में बेहोश भी हो गई.

ऑफिस में घोड़े जैसा बड़ा लोडा लिया

दो औरतें तो ऐसी थी जिनकी चूत रामलाल के फौलादी लौदे ने सुच्मुच ही फाड़ दी थी. अब तक रामलाल कम से कम बीस औरतों को चोद चुका था. लेकीन रामलाल जानता था की पैसा दे कर चोदने में वो मज़ा नहीं जो लड़की को पटा के चोदने में है. आज तक चुदाई का सबसे ज़्यादा मज़ा उसे अपनी साली को चोदने में आया था. माया देवी की बहिन सीता, माया देवी से १० साल छोटी थी. रामलाल ने जब उसे पहली बार चोदा उस वक्त उसकी उम्र १७ साल की थी. कॉलेज में पर्ती थी. गर्मिओं की छुट्टी बिताने अपने जीजा जी के पास आई थी. बिल्कुल कुंवारी चूत थी. रामलाल ने उसे भी खेत के पम्प हौस में ही चोदा था. रामलाल के मूसल ने सीता की कुंवारी नाज़ुक सी चूत को फाड़ ही दीया था. सीता बहुत चिल्लाई थी और फीर बेहोश हो गई थी. उसकी चूत से बहुत खून निकला था.

रामलाल ने सीता के होश में आने से पहले ही उसकी चूत का सारा खून साफ कर दीया था ताकी वो डर न जाए. रामलाल से चुदने के बाद सीता सात दिन ठीक से चल भी नहीं पाई और जब ठीक से चलने लायक हुई तो शहर चली गई. लेकीन ज़्यादा दिन शहर में नहीं रह सकी. रामलाल के फौलादी लौडे की याद उसे फीर से अपने जीजू के पास खींच लायी. इस बार तो सीता सिर्फ़ जीजा जी से चुदवाने ही आई थी. रामलाल ने तो समझा था की साली जी नाराज़ हो कर चली गई. आते ही सीता ने रामलाल को कहा ” जीजा जी मैं सिर्फ़ आपके लीये ही आई हूँ.” उसके बाद तो करीब रोज़ ही रामलाल सीता को खेत के पम्प हौस में चोद्ता था. सीता भी पूरा मज़ा ले कर चुदवाती थी. रामलाल के खेत में काम करने वाली सभी औरतों को पटा था की जीजा जी साली की खूब चुदाई कर रहे हैं.

ये सिलसिला करीब चार साल चला. सीता की शादी के बाद रामलाल फीर खेत में काम करने वालिओं को चोदने लगा. लेकीन वो मज़ा कहाँ जो सीता को चोदने में आता था. बरे नाज़ नखरों के साथ चुदवाती थी. शादी के बाद एक बार सीता गाँव आई थी. मोका देख कर रामलाल ने फीर उसे चोदा. सीता ने रामलाल को बताया था की रामलाल के लंबे मोटे लौडे के बाद उसे पति के लंड से त्रिप्ती नहीं होती थी. सीता भी राम लाल को कहती ” जीजू आपका लंड तो सुच्मुच गधे के लंड जैसा है.” गाँव में गधे कुछ ज़्यादा ही थे. जहाँ नज़र डालो वहीं चार पाँच गधे नज़र आ जाते. कुछ दिन बाद सीता के पति और सीता दुबई चले गए. उसके बाद से रामलाल को कभी भी चुदाई से तृप्ति नहीं मिली. अब तो सीता को दुबई जा कर २० साल हो चुके थे.

रामलाल के लीये अब वो सिर्फ़ याद बुन कर रह गई थी. माया देवी तो अब पूजा पथ में ही ध्यान लगाती थी. इस उम्र में खेत में काम करने वाली औरतों को भी छोड़ना मुश्किल हो गया था. अब तो जब कभी माया देवी की कृपा होती तो साल में एक दो बार उनको चोद कर ही काम चलाना परता था. लेकीन माया देवी को चोदने में बिल्कुल भी मज़ा नहीं आता था. धीरे धीरे रामलाल को विश्वास होने लगा था की अब उसकी चोदने की उम्र नीकल गई है. लेकीन जब से बहू घर आई थी रामलाल की जवानी की यादें फीर से ताज़ा हो गई थी.

बहू की जवानी तो सुच्मुच ही जान लेवा थी. सीता तो बहू के सामने कुछ भी नहीं थी. शादी कऐ बाद से तो बहू की जवानी मनो बहू के ही काबू में नहीं थी. बहू के कपरे बहू की जवानी को छुपा नहीं पाते थे. जब से बहू आई थी रामलाल की रातों की नींद उर गई थी. बहू रामलाल से परदा करती थी. मुंह तो दहक लेती थी लेकीन उसकी बड़ी बड़ी छूचियन खुली रहती थी. गोरा बदन, लंबे काले घने बाल, बड़ी बड़ी छातियन, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चूतडों बहुत जान लेवा थे. तिघत चूरिदार में तो बहू की मांसल टांगें रामलाल की वासना भड़का देती थी. सविता जी जान से अपने सास ससुर की सेवा करने में लगी हुई थी.सविता को महसूस होने लगा था की सुर्जी उसे कुछ अजीब सी नाज्रोंसे देखते हैं.

वैसे भी औरतों को मरद के इरादों का बहुत जल्दिपता लग जाता है. फीर वो अक्सर सोचती की शायद ये उसका वहम है.सुर जी तो उसके पिता के समान थे.एक दिन की बात है. सविता ने अपने कपरे धो कर छत पर सूख्नेदाल रखे थे. इतने में घने बादल छा गए. बारिश होने कोठी. रामलाल सविता से बोले,” बहू बारिश होने वाली है मैं ऊपर से कपडे ले आता हूँ.”" नहीं. नहीं पिताजी आप क्यों तकलीफ करते हैं मैं अभी जा के लाती हूँ.” सविता बोली. उसे मालूम था की आज सिर्फ़ उसी के कपडे सूख रहे थे.” अरे बहू टब सारा दिन इतना काम करती हो. इसमे तकलीफ कैसी? हमें भी तो कुछ काम करने दो.” ये कह के रामलाल चाट पे चल पड़ा. छत पे पहुँच के रामलाल को पटा लगा की क्यों बहू ख़ुद ही कपरे लेन की जीद कर रही थी. डोरी पर सिर्फ़ दो ही कपरे सूख रहे थे. एक बहू की कच्छी और एक उसकी ब्रा.

रामलाल का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.कितनी छोटी सी कच्छी थी, बहू के विशाल नितम्ब को कैसे धक्तिहोगी. रामलाल से नहीं रहा गया और उसने सविता की पैंटी को डोरी सुतार लीया और हाथों में पैंटी के मुलायम कपरे को फील कर्नेलगा. फीर उसने पैंटी को उस जगह से सूंघ लीया जहाँ सविता किचूत पैंटी से तौच करती थी. हालांकी पैंटी धुली हुई थी फीर भि राम्लाल औरत के बदन की खुशबू पहचान गया. रामलाल मन ही मन सोचने लगा की अगर धुली हुई कच्छी में से इतनी मादक खुश्बू आती है तो पहनी हुई कच्छी की गंध तो उसे पागल बना देगी. राम्लाल्का लौडा हरकत करने लगा. वो बहू की पैंटी और ब्रा ले कर नीचे आया,

” बहू ऊपर तो ये दो ही कपडे थे.” ससुर के हाथ में अपनी पंत्यौर ब्रा देख कर सविता शरम से लाल हो गई. उसने घूघट तोनिकाल ही रखा था इसलिए रामलाल उसका चेहरा नहीं देख सकता था.सविता शर्माते हुए बोली,” पिताजी इसीलिए तो मैं कह रही थी की मैं ले आती हूँ. आप्नेबेकार तकलीफ की.”

” नहीं बहू तकलीफ किस बात की? लेकीन ये इतनी छोटी सी कछितुम्हारी है?” अब तो सविता का चेहरा टमाटर की तरह सुर्ख लाल होगया.

” ज्ज्ज..जी पिताजी.” सविता सिर नीचे किए हुए बोली.” लेकीन बहू ये तो तुम्हारे लीये बहुत छोटी है. इससे तुम्हारा काम्चल तो जाता है न?”" जी पिताजी.” सविता सोच रही थी की कीसी तरह ये धरती फत्जाए और मैं उसमे समा जाऊं.” बेटी इसमे शर्माने की क्या बात है ?. तुम्हारी उम्र में लड़किओं कि कछी अक्सर बहुत जल्दी छोटी हो जाती है.

गाँव में तो और्तें कच्च्ही पहनती नहीं हैं. अगर छोटी हो गई है तो सासू माँ सेकः देना शहर जा कर और खरीद एंगी. हम गए तो हम ले आएँगे.लो ये सूख गई है, रख लो.” ये कह कर रामलाल ने सविता को उस्कि पंटी और ब्रा दे दी. इस घटना के बाद रामलाल ने सविता के साथ और्खुल कर बातें करना शुरू कर दीया था एक दिन माया देवी को शहर सत्संग में जन था. रामलाल उनको ले कर शहर जाने वाला था. दोनों घर से सबह स्टेशन की और चल पड़े.रास्ते में रामलाल के जान पहचान का लड़का कार से शहर जाता हामिल गया. रामलाल ने कहा की Aunty को भी साथ ले जाओ.

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लड़का मंगाया और माया देवी उसके साथ कार में शहर चली गई. रामलाल घर्वापस आ गया. दरवाज़ा उंदर से बूंद था. बाथरूम से पानी गिरने किअवाज़ आ रही थी. शायद बहू नहा रही थी. सविता तो समझ रहिथि की सास ससुर शाम तक ही वापस लौटेंगे. रामलाल के कमरे का एक्दार्वाज़ा गली में भी खुलता था. रामलाल कमरे का टला खोल के अप्नेकमरे में आ गया. उधर सविता बेखबर थी. वो तो समझ रही थीकि घर में कोई नहीं है. नहा कर सविता सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज में ही बाथरूम से बाहर नीकल आई. उसका बदन अब भी गीला था. बाल भीगे हुए थे. सविता अपनी पैंटी और ब्रा जो अभी उसने धोई थी सुखाने के लीये आँगन में आ गई. रामलाल अपने कमरे के परदे के पीछे से सारा नज़ारा देख रहा था. बहू को पेटीकोट और ब्लाउज में देख कर रामलाल को पसीना आ गया. क्या बाला की खूबसूरत थी.

बहुत कसा हुआ पेटीकोट पहनती थी. बदन गीला होने के कारण पेटीकोट उसके चूतडों से चिपका जा रहा था. बहू के फैले हुए चूतडों पेटीकोट में बरी मुश्किल से समा रहे थे. बहू का मादक रूप मनो उसके ब्लाउज और पेटीकोट में से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था. उफ क्या गद्राया हुआ बदन था. बहू ने अपनी धुली हुई कच्छी और ब्रा डोरी पर सूखने दाल दी. अचानक वो कुछ उठाने के लीये झुकी तो पेटीकोट उसके विशाल चूतडों पर कास गया. पेटीकोट के सफ़ेद कपरे में से रामलाल को साफ दीख रहा था की आज बहू ने काले रंग की कच्छी पहन रखी है.

उफ बहू के सिर्फ़ बीस प्रतिशत चूतडों ही कच्छी में थे बाकी तो बाहर गिर रहे थे. जब बहू सीधी हुई तो उसकी कच्छी और पेटीकोट उसके विशाल चूतडों के बीच में फास गए. अब तो रामलाल का लौडा फन्फनाने लगा. उसका मन कर रहा था की वो जा कर बहू के चूतडों की दरार में फँसी पेटीकोट और कच्छी को खींच के निकाल ले. बहू ने मानो रामलाल के दिल की आवाज़ सुन ली. उसने अपनी चूतडों की दरार में फँसे पेटीकोट को कींच के बाहर निकाला लीया. बहू आँगन में खरी थी इसलिए पेटीकोट में से उसकी मांसल टांगें भी नज़र आ रही थी.

रामलाल के लंड में इतना तनाव सीता को चोदते वक्त भी नहीं हुआ था. बहू के सेक्सी चूतडों को देख के रामलाल सोचने लगा की इसकी गांड मार के तो आदमी धन्य हो जाए. रामलाल ने आज तक कीसी औरत की गांड नहीं मारी थी. असलियत तो ये थी की रामलाल का गधे जैसा लौडा देख कर कोई औरत गांड मरवाने के लीये राज़ी ही नहीं थी. माया देवी तो चूत ही बरी मुश्किल से देती थी गांड देना तो बहुत दूर की बात थी. एक दिन सविता ने खेतों में जाने की इच्छा प्रकट की. उसने सासू माँ से कहा, ” मम्मी जी मैं खेतों में जाना चाहती हूँ, अगर आप इजाज़त देन तो आपके खेत और फसल देख औन. शहर में तो ये देखने को मिलता नहीं है.”

” अरे बेटी इसमें इजाज़त की क्या बात है? तुम्हारे ही खेत हैं जब चाहो चली जाओ. मैं अभी तुम्हारे ससुर जी से कहती हूँ तुम्हें खेत दिखाने ले जाएँ.”

” नहीं नहीं मम्मी जी आप पिताजी को क्यों परेशान करती हैं मैं अकेली ही चली जाउंगी.”

” इसमे परेशान करने की क्या बात है? कई दिन से ये भी खेत नहीं गए हैं तुझे भी साथ ले जाएंगे. जाओ टब तैयार हो जाओ. और हाँ लहंगा चोली पहन लेना, खेतों में जाने के लीये वही ठीक रहता है.” सविता तैयार होने गई. माया देवी ने रामलाल को कहा,

” अजी सुनते हो, आज बहू को खेत दिखा लाओ. कह रही थी मैं अकेली ही चली जाती हूँ. मैंने ही उसको रोका और कहा ससुरजी तुझे ले जाएंगे.”

” ठीक है मैं ले जाऊंगा, लेकीन अकेली भी चली जाती तो क्या हो जाता ? गाँव में किस बात का डर?”"

” कैसी बातें करते हो जी? जवान बहू को अकेले भेजना चाहते हो. अभी नादाँ है. अपनी जवानी तो उससे संभाली नहीं जाती, अपने आप को क्या संभालेगी? ” इतने में सविता आ गई. लहंगा चोली में बला की खूबसूरत लग रही थी.

” चलिए पिताजी मैं टायर हूँ.”

” चलो बहू हम भी टायर हैं.” ससुर और बहू दोनों खेत की और नीकल परे. सविता आगे आगे चल रही थी और रामलाल उसके पीछे. सविता ने घूंघट निकाल रखा था. रामलाल बहू की मस्तानी चाल देख कर पागल हुआ जा रहा था. बहू की पतली गोरी कमर बल खा रही थी. उसके नीचे फैले हुए मोटे मोटे चूतडों चलते वक्त ऊपर नीचे हो रहे थे. लहंगा घुटनों से थोड़ा ही नीचे था. बहू की गोरी गोरी टांगें और चूतडों तक लटकते लंबे घने काले बाल रामलाल की दिल की धड़कन बारह रहे थे. ऐसा नज़ारा तो रामलाल को ज़िंदगी में पहले कभी नसीब नहीं हुआ. रामलाल की नज़रें बहू के मटकते हुए मोटे मोटे चूतडों और पतली बल खाती कमर पर ही टिकी हुई थी.

जान लेवा चूतडों को मटकते देख कर रामलाल की आंखों के सामने उस दिन का नजारा घूम गया जिस दिन उसने बहू के चूतडों के बीच उसके पेटीकोट और कच्छी को फँसे हुए देखा था. रामलाल का लौडा खड़ा होने लगा. सविता घूंघट निकाले आगे आगे चली जा रही थी. वो अच्छी तरह जानती थी की ससुर जी की आँखें उसके मटकते हुए नितम्ब पे लगी हुई हैं. रास्ता संकरा हो गया था और अब वो दोनों एक पूग डंडी पे चल रहे थे. अचानक साइड की पूग डंडी से दो गधे सविता के सामने आ गए. रास्ता इतना कम चौरा था की साइड से आगे निकलना भी मुश्किल था. मजबूरन सविता को गधों के पीछे पीछे चलना पड़ा. अचानक सविता का ध्यान पीछे वाले गधे पे गया.

” अरे पिताजी देखिये ये कैसा गधा है ? इसकी तो पाँच टांगें हैं.” सविता आगे चल रहे गधे की और इशारा करते हुए बोली.

” बेटी, टब तो बहुत भोली हो, ज़रा ध्यान से देखो इसकी पाँच टांगें नहीं हैं.” सविता ने फीर ध्यान से देखा तो उसका कलेजा दहक सा रह गया. गधे की पाँच टांगें नहीं थी, वो तो गधे का लंड था. बाप रे क्या लम्बा लंड था ! ऐसा लग रहा था जैसे उसकी टांग हो. सविता ने ये भी नोटिस कीया की आगे वाला गधा, गधा नहीं बल्कि गधी थी क्योंकि उसका लंड नहीं था. गधे का लंड खरा हुआ था. सविता समझ गई की गधा क्या करने वाला था. अब तो सविता के पसीने चूत गए. पीछे पीछे ससुर जी चल रहे थे. सविता अपने आप को कोसने लगी की ससुर जी से क्या सवाल पूछ लीया. सविता का शरम के मरे बुरा हाल था. रामलाल को अच्छा मोका मिल गया था. उसने फीर से कहा,

” बोलो, बहू हैं क्या इसकी पाँच टांगें ?” सविता का मुंह शरम से लाल हो गया, और हक्लाती हुई बोली,

” जज..जी चार ही हैं.”

” तो वो पांचवी चीज़ क्या है बहु?”

” ज्ज्ज…जी वो तो ……जी हमें नहीं पटा.”

„ पहले कभी देखा नहीं बेटी ?” रामलाल मेज़ लेता हुआ बोला.

” नहीं पिताजी.” सविता शर्माते हुए बोली.

” मर्दों की टांगों के बीच में जो होता है वो तो देखा है न?”

” जी..” अब तो सविता का मुंह लाल हो गया.

” अरे बहू जो चीज़ मर्दों के टांगों के बीच में होती है ये वाही चीज़ तो है.” रामलाल सविता के साथ इस तरह की बातें कर ही रहा था की वाही हुआ जो सविता मन ही मन मन रही थी की ना हो. गधा अचानक गधी पे चढ़ गया और उसने अपना तीन फ़ुट लम्बा लंड गधी की चूत में पेल दीया. गधा वहीं खरा हो कर गधी के उंदर अपना लंड पेलने लगा. इतना लम्बा लंड गधी की चूत में जाता देख सविता हार्बर कर रुक गई और उसके मुंह से चीख नीकल गई,

” ऊओईइ मा….”

” क्या हुआ बहू ?”

” ज्ज्ज..जी कुछ नहीं.” सविता घबराते हुए बोली.

” लगता है हमारी बहू डर गई.” रामलाल मौके का पूरा फायदा उठता हुआ दरी हुई सविता का साहस बर्हाने के बहाने उसकी पीठ पे हाथ रखता हुआ बोला.

” जी पिताजी.”

” क्यों डरने की क्या बात है ?”

” वैसे ही.”

” वैसे ही क्या मतलब ? कोई तो बात ज़रूर है. पहली बार देख रही हो न?” रामलाल सविता की पीठ सहलाता हुआ बोला.

” जी.” सविता शर्माते हुए बोली.

” अरे इसमें शर्माने की क्या बात है बहु. जो राकेश तुम्हारे साथ हेर रात करता है वाही ये गधा भी गधी के साथ कर रहा है.”

” लेकीन इसका तो इतना…….” सविता के मुंह से अनायास ही नीकल गया और फीर वो पच्छ्तायी..

” बहुत बड़ा है बहु?” रामलाल सविता की बात पूरी करता हुआ बोला.

अब रामलाल का हाथ फिसल कर सविता के नितम्ब पे आ गया था.

” ज्ज्जी….” सविता सिर नीचे किए हुए बोली.

” ओ ! तो इसका इतना बार देख के डर गई ? कुछ मर्दों का भी गधे जैसा ही होता है बहु. इसमें डरने की क्या बात है ?. जब औरत बरे से बार झेल लेती है, फीर ये तो गधी है.”

सविता का चेहरा शरम से लाल हो गया था. वो बोली,

” चलिए पिताजी वापस चलते हैं, हमें बहुत शरम आ रही है.”

” क्यों बहू वापस जाने की क्या बात है? तुम तो बहुत शर्माती हो. बस दो मिनट में इस गधे का काम खत्म हो जाएगा फीर खेत में चैलेन्ज.” बातों बातों में रामलाल एक दो बार सविता के नितम्ब पे हाथ भी फेर चुक्का था. रामलाल का लंड सविता के मुलायम नितम्ब पर हाथ फेर के खड़ा होने लगा था. वो सविता की पैंटी भी फील कर रहा था. सविता क्या करती ? घूंघट में से गधे को अपना लंड गधी के उंदर पेलते हुए देखती रही. इतना लम्बा लंड गधी के उंदर बाहर जाता देख उसकी चूत पे भी चीतियन रेंगने लगी थी.

ज्वार के खेत में कुंवारी बुर को लंड से खोला

सविता को रामलाल का हाथ अपने नितम्ब पर महसूस हो रहा था. इतनी भोली तो थी नहीं. दुनियादारी अच्छी तरह से समझती थी. वो अच्छी तरह समझ रही थी की ससुर जी मौके का फायदा उठा के सहानुभूति जताने का बहाना करके उसकी पीठ और नितम्ब पे हाथ फेर रहे हैं. इतने में गधा झर गया और उसने अपना तीन फ़ुट लम्बा लंड बाहर निकाल लीया. गधे के लंड में से अब भी वीर्य गिर रहा था. ससुर जी ने दोनों गधों को रास्ते से हटाया और सविता के चूतडों पे हथेली रख कर उसे आगे की और हलके से धक्का देता हुआ बोला,

” चलो बहू अब हम खेत चलत हैं.”

” चलिए पिताजी.”

” बहू मालूम है तुम्हारी सासू माँ भी मुझे गधा बोलती है.”

” हा.. ! क्यों ? आप तो इतने अच्छे हैं.”

” बहू तुम तो बहुत भोली हो. वो तो कीसी और वझे से मुझे गधा बोलती है.” अचानक सविता रामलाल का मतलब समझ गई. शायद ससुर जी का लंड भी गधे के लंड के माफिक लम्बा था तुभी सासू माँ ससुर जी को गधा बोलती थी. इतनी सी बात समझ नहीं आई ये सोच कर सविता अपने आप को मन ही मन कोसने लगी. सविता सोच रही थी की ससुर जी उससे कुछ ज़्यादा ही खुल कर बातें करने लगे हैं. इस तरह की बातें बहू और ससुर के बीच तो नहीं होती हैं. बात बात में प्यार जताने के लीये उसकी पीठ और नितम्ब पे भी हाथ फेर देते थे.थोरी ही देर में दोनों खेत में पहुँच गए. रामलाल ने सविता को सारा खेत दिखाया और खेत में काम करने वाली औरतों से भी मिलवाया. सविता थक गई थी इसलिए रामलाल ने उसे एक आम के पैर के नीचे बैठा दीया.

” बहू तुम यहाँ आराम करो मैं कीसी औरत को तुम्हारे पास भेजता हूँ. मुझे थोड़ा पम्प हौस में काम है.”

” ठीक है पिताजी मैं यहाँ बैठ जाती हूँ.”

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